Imprint: Orient Publishing
Publication Date: 08 Apr, 2013
Pages Count: 352 Pages
Weight: 360.00 Grams
Dimensions: 5.50 x 8.50 Inches
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About the Book:
एक महाकाव्यात्मक उपन्यास! जैसा कि नाम से स्पष्ट है प्रेमचन्द ने इस संसार को विशाल रंगभूमि माना है, जिस पर जीवन रूपी विराट् नाटक खेला जाता है। इस नाटक का सूत्रधार ईश्वर है और सांसारिक प्राणी उसके अभिनेता।
कला और तत्वज्ञान की दृष्टि से रंगभूमि प्रेमचन्द का मास्टरपीस है। वह शरीर पर आत्मा की विजय का शंखनाद है, वह सम्पूर्ण जीवन का एक चित्र और उस चित्र में चिरन्तन तत्व की कला का प्रस्फुटन है।
रंगभूमि मेरी राय में प्रेमचन्द का ही नहीं, हिन्दुस्तान का सबसे अच्छा उपन्यास है। रंगभूमि में कहानी है, काव्य है, फिलॉसफी है, मनोविज्ञान है और ढूंढने पर नीति, धर्म और सोशलिज़्म का भी बहुत सा मसाला मिल जाएगा। रंगभूमि हमारी ज़िन्दगी का खाका है।
प्रेमचन्द (31 जुलाई, 1880 — 8 अक्तूबर 1936) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचन्द व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास सम्राट के नाम से अभिहित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था। प्रेमचन्द ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचन्द ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है।