Imprint: Orient Publishing
Publication Date: 02 Jan, 2012
Pages Count: 304 Pages
Weight: 325.00 Grams
Dimensions: 5.50 x 8.50 Inches
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About the Book:
गोदान — प्रेमचंद का अन्तिम और आलोचकों-अनुसार उनका सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास — हिन्दी साहित्य की उत्कृष्टता का उदहारण है. इस उपन्यास में ग्रामीण परिस्थितियों और पात्रों का जीवन्त वर्णन किया गया है. भारतीय संस्कृति का सम्पूर्ण आभास करवाता हुआ गोदान का मुख्य परिवार असंख्य समस्याओं से जूझता है परन्तु आशा का छोर नहीं छोड़ता ...
गोदान आज भी प्रासंगिक है और हमेशा ही रहेगा। आज भी गांव की स्थिति दयनीय है। कृषक आज भी आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं... हमें मुंशी प्रेमचन्द की कालजयी आवाज़ को अवश्य सुनना चाहिए।
प्रेमचन्द ने कथा को ऐयारी-तिलस्म की कुतूहल भरी गलियों से निकाल कर सामान्य जन-जीवन के राजमार्ग पर खड़ा कर दिया।
प्रेमचन्द (31 जुलाई, 1880 — 8 अक्तूबर 1936) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचन्द व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास सम्राट के नाम से अभिहित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था। प्रेमचन्द ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचन्द ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है।